कुछ सवाल मसीही विश्वासियों के लिए, क्या आपके पास जवाब है ?

 जीवित या मृत कलीसिया

1. क्या हमारी कलीसिया आत्मिक रूप से ठंडी पड़ गई है?

> “मैं तेरा काम जानता हूँ, कि तू न ठंडा है न गरम; भला होता कि तू ठंडा होता या गरम।” — प्रकाशित वाक्य 3:15

---

2. क्या हमने यह महसूस किया है कि हम साथ-साथ होकर भी अकेले लड़ रहे हैं?

> “दो से बेहतर एक हैं… क्योंकि यदि वे गिर पड़ें तो एक दूसरे को उठा लेंगे।” — सभोपदेशक 4:9-10

---

3. हम व्हाट्सएप ग्रुप और रविवार की सभा होने के बाद भी अपना दुख-दर्द और प्रार्थना निवेदन खुलकर क्यों नहीं बाँटते?

> “तुम एक-दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।” — गलातियों 6:2

---

4. क्या हम एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करते?

> “सच्चा प्यार भय को दूर कर देता है।” — 1 यूहन्ना 4:18 “भाईचारे के प्रेम से एक-दूसरे पर तरस खाओ।” — 1 पतरस 3:8

---

5. क्या हम प्रेम और अपनापन खो बैठे हैं?

> “यदि मैं … प्रेम न रखूँ तो मैं कुछ भी नहीं।” — 1 कुरिन्थियों 13:2 “तुम्हारा प्रेम खरा और कपट-रहित हो।” — रोमियों 12:9

---

6. क्या हम सच-मुच एक-दूसरे की फिक्र करते हैं?

> “यदि एक अंग दुखी होता है, तो सब अंग उसके साथ दुखी होते हैं।” — 1 कुरिन्थियों 12:26

---

7. क्या हम वह कलीसिया बन पाए हैं जिसकी प्रभु यीशु मसीह इच्छा करते हैं?

कलीसिया कोई इमारत नहीं; हम ही हैं — एक परिवार, एक शरीर।

> “अब तुम मसीह की देह हो, और अलग-अलग अंग हो।” — 1 कुरिन्थियों 12:27

8. क्या हम पवित्र आत्मा के फल अपने जीवन में प्रकट होते देख रहे हैं?

> “परन्तु आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धैर्य, कृपा, भलाई, विश्वास, कोमलता और आत्म-संयम है।” — गलातियों 5 : 22-23

---

9. क्या हमारी आराधना केवल रविवार तक सीमित है, या हर दिन का जीवन परमेश्वर के लिए आराधना बन चुका है?

> “इसलिए, हे भाइयो, मैं परमेश्वर की दया से तुम्हें समझाता हूँ कि… अपने शरीरों को जीवित, पवित्र और परमेश्वर को भांवता हुआ बलिदान होने के लिए अर्पित करो; यही तुम्हारी आत्मिक आराधना है।” — रोमियों 12 : 1

---

10. क्या हम सुसमाचार को बाँटने और जरूरतमंदों की सेवा में सक्रिय हैं?

> “जैसे पुत्र मनुष्य भी सेवा कराने नहीं, पर सेवा करने और बहुतों के छुड़ाने के लिये अपना प्राण देने आया।” — मत्ती 20 : 28

“भूखे को रोटी और प्यासे को पानी देना, परदेशी को अपने घर लेना, नग्न को वस्त्र पहनाना…” — यशायाह 58 : 7

---

कलीसिया क्या है?

परमेश्वर का बुलाया हुआ जीवित समुदाय — “…ताकि तुम उसके अद्भुत प्रकाश में प्रवेश करो।” — 1 पतरस 2:9

प्यार, क्षमा और सेवा का घर — “…प्रेम से परेरित हो कर प्रेम में चलो।” — इफिसियों 5:2

दुखियों की शरण और आशाहीनों की आशा — “थके-माँदे बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।” — मत्ती 11:28

---

आज स्वयं से पूछें

1. क्या मैं केवल ‘चर्च-जाने वाला’ हूँ, या वास्तव में कलीसिया का जीवित अंग हूँ?

2. क्या मैं अपने भाई-बहनों के साथ पारदर्शी और दयालु हूँ?

3. क्या मेरा प्रेम व्यवहार में परिलक्षित होता है?

4. क्या मेरी प्रार्थनाएँ केवल मेरी ज़रूरियात तक सीमित हैं, या मैं दूसरों के लिए भी जिम्मेदारी उठाता हूँ?

5. क्या हमारे मध्य ऐसी गर्माहट है कि नया व्यक्ति सहज-भाव से अपना मन खोल सके?

अंत में 

प्रिय परिवार, जीवित कलीसिया केवल उपस्थिति हाजिरी लगाना या भवन का नाम नहीं, बल्कि वह गर्म धड़कता हृदय है जो पवित्र आत्मा में धधकता रहता है। जब हम पारदर्शिता, सहभागिता, आत्मा के फल, निरंतर आराधना और सक्रिय सेवा को अपनाते हैं, तब ईश्वर-जन मिलकर दुनिया के सामने जीवित साक्षी बन जाते हैं।

> “तुम्हारा प्रकाश लोगों के सामने ऐसा चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे स्वर्गीय पिता की महिमा करें।” — मत्ती 5 : 16

---

आईए इन प्रश्नों पर मनन करें, प्रार्थना में उत्तर ढूँढ़ें, और मिल-कर एक सजीव, प्रेम-पूर्ण तथा उद्धारकारी कलीसिया बनें!

🙏🏻 Pastor Manish Salhotra

Comments

Popular posts from this blog

मसीही अगुवों और विश्वासीयों के लिए आत्मिकता और संबंधों में संतुलन की ज़रूरत।

परमेश्वर के अतिरिक्त सिर झुकाना – बाइबल क्या कहती है?