मसीही अगुवों और विश्वासीयों के लिए आत्मिकता और संबंधों में संतुलन की ज़रूरत।
मसीही अगुवे और विश्वासी के रूप में हमारा यह कर्तव्य है कि हम बाइबल के आत्मिक सिद्धांतों और पारिवारिक-सामाजिक मर्यादा — दोनों में संतुलन बनाए रखें। मंच या कलीसिया से बोले गए हमारे शब्द सिर्फ ज्ञान नहीं, बल्कि संबंधों की गरिमा को भी दर्शाते हैं।
1..पत्नी के लिए..या पति के लिए..
भरी सभा में उसे जब आप माइक पर उन्हें न्योता दे या अन्य कोई कार्य तो बहन या भाई कहकर ना पुकारे लेकिन मेरी पत्नी परमेश्वर की दासी या दास कहना उचित है।
2..अपने मां-बाप के लिए या किसी रिश्तेदार के लिए जो आपसे बड़े और आदरणीय है...
उन्हें भी सभा में भाई-बहन ना कहकर आदरणीय मेरी माता जी या आदरणीय मेरे पिताजी या कोई भी रिश्ता हो कहना उचित है।
यीशु मसीह ने कभी भी किसी भी रिश्ते को छुपाने के लिए या रिश्तो के भाव बदलने के लिए नहीं कहा चाहे वह संसार में हो या आत्मिक रीति से हो।
हां एक बात है अगर मैं एक पास्टर या सेविका हूं और मेरे रिश्तेदार और मेरे परिवार के लोग यह जानते हैं तो अवश्य है, अगर ( परिवार के लोग ) वह विश्वासी है तो सभाओं में परिवार के लोग और रिश्तेदार सबके सामने पास्टर करके ही संबोधन करें या बुलाएं। उन्हें चाहिए कि वह विशेष नाम जो घरों में इस्तेमाल किया जाता है छोटा या बड़ा नाम लेकर ना पुकारे लेकिन पास्टर कह करके पुकारे।
केवल यहीं बातें ध्यान रखने के योग्य है।
लेकिन एक पास्टर या सेविका या विश्वासी को अपना आदर्श दिखाना है उन्हें अपनी आत्मिकता अपने परिवार की मर्यादा भी बना कर रखनी है अपने रिश्तों की मर्यादा भी बनाकर रखनी है अपने शब्दों और सोच में ही बदलाव करके यह सब हो सकता है और यकीन मानिए परमेश्वर भी हमारी समझदारी उसे समझदारी से किए गए कार्यों से प्रसन्न होता है।
और अगर इस बारे में किसी को आपत्ति है तो वह मुझसे बात कर सकते हैं क्योंकि इतनी बातें लिखना और आमने-सामने बात करना इन दोनों में फर्क होता है।
और इस विषय पर हम बाइबल के अनुसार बाइबल से ही बात करेंगे
धन्यवाद 🙏पास्टर मनीष सल्होत्रा
Praise God 🙌🏻🙌🏻🙌🏻
ReplyDelete